
Wednesday, 7 August 2013
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मिलावटी दूध बेच रहा है रिलायंस
अगर आप यह सोचते हैं कि बड़े ब्रांड ही शुद्घता की गारंटी हैं तो जरा ठहर जाइये। रिलायंस के दूध में भारी मिलावट है, जो आपको गंभीर बीमारियां दे सकती है। रिलायंस मिलावटी दूध अपने बड़े नाम के नीचे चुपचाप बेच रहा है और आप ठगे जा रहे हैं।
दूध के नमूने जांच में फेल पाए जाने पर रिलायंस कंपनी को एक लाख रुपये का जुर्माना भरना पड़ा। कंपनी की अपील खाद्य सुरक्षा आयुक्त ने खारिज कर दी। जुर्माना एडीएम कोर्ट में भरा गया।
क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी दिलीप जैन ने बताया कि नौ अक्तूबर 2012 को खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने सलेमपुर स्थित योगेश कुमार की डेरी से रिलायंस कंपनी के दूध के नमूने भरे थे।
नमूनों को पहले जांच के लिए रुद्रपुर और बाद में पूना स्थित सेंट्रल लैब भेजा गया था। जांच में रिलायंस कंपनी के दूध के नमूने फेल पाए गए। इस पर कंपनी के खिलाफ तीन जनवरी 2012 को� एडीएम की अदालत में मामला दर्ज किया गया।
छह दिसंबर 2012 को कंपनी पर कोर्ट ने एक लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया। बाद में कंपनी ने खाद्य सुरक्षा आयुक्त के पास अपील की लेकिन वहां कंपनी की अपील खारिज कर दी गई। मंगलवार को कंपनी ने एडीएम आलोक पांडे की अदालत में जुर्माना भर दिया है।
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-प्रिय दोस्तों,
पिछले कुछ वर्षों से देश भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हुआ है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई- सभी धर्मं के लोग अन्ना के नेतृत्व में एकजुट हुए। गंदी राजनीति करने वाले नेता इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। ये इस एकजुटता को तोड़ने की कोशिश करेंगे ताकि इनका भ्रष्टाचार चलता रहे।
मैंने मुसलमान बहनों, भाइयों के नाम एक पत्र लिखा था। उस पत्र में मैंनें लिखा था कि किस तरह से पिछले 65 सालों से कांग्रेस पार्टी ने इस देश के मुसलमानों को अपना बंधुआ वोटर बना रखा है। ‘‘बीजेपी आ जाएगी’’ - यह डर दिखाकर कांग्रेस मुसलमानों से वोट लेती है। एक तरफ कांग्रेस ने मुसलमानों को अपना वोट बैंक बना रखा है और दूसरी तरपफ बीजेपी हिंदुओं में मुसलमानों के प्रति नफरत पैदा कर उन्हें अपना वोट बैंक बनाने की कोशिश करती है। न आज तक कांग्रेस ने मुसलमानों का कोई भला किया और न बीजेपी ने हिंदुओं का कोई भला किया।
कांग्रेस, बीजेपी व अन्य कुछ पार्टियों की पूरी राजनीति हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ज़हर घोलने पर ही चलती है। जितना हिंदुओं और मुसलमानों के मन में एक-दूसरे के खिलाफ ज़हर पैदा होगा उतनी ही इन पार्टियों की राजनीति चमकेगी।
इस नफरत की राजनीति को ख़त्म करके दोनों कौमों के बीच अमन और चैन कायम करना ‘आम आदमी पार्टी’ का ध्येय है। यही बात करने के लिए मैंने वह पत्र लिखा था।
कई साथियों ने उस पत्र की तारीफ की। उन्होंने उस पत्र की भावना को और उसके मक़सद को समझा है। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच में अमन और शांति का माहौल पैदा करने की इस नई राजनीति की पहल का उन्होंने स्वागत किया है।
लेकिन कुछ साथियों ने कुछ प्रश्न भी उठाएं हैं। इस पत्र के ज़रिए मैं उन प्रश्नों के जवाब देने की कोशिश करूंगा।
एक प्रश्न यह पूछा गया है कि मैंने मुसलमानों के लिए अलग से पत्र क्यों लिखा? मेरा जवाब है कि इसमें गलत क्या है। अगर इस पत्र के जरिए मैं हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अमन और शांति कायम करने का प्रयास करता हूं तो इसमें गलत क्या है। अगर मैं मुसलमानों को कांग्रेस की वोट बैंक की राजनीति के चंगुल से मुक्त होने की अपील करता हूं तो इसमें गलत क्या है? इसके पहले मैंने दिल्ली के व्यापारियों के नाम एक पत्र लिखा था। व्यापारियों को भारतीय जनता पार्टी ने आज तक अपना वोट बैंक बना कर रखा, लेकिन उनके लिए किया कुछ भी नहीं। इसके पहले मैंने बाल्मिकी समाज के लिए भी एक पत्रा लिखा था। बाल्मिकी समाज को आज तक कांग्रेस ने अपना वोट बैंक बना कर रखा लेकिन उनके लिए कुछ नहीं किया। इसके पहले मैंने दिल्ली के झुग्गीवासियों के नाम भी एक पत्र लिखा था। इन्हें कांग्रेस ने अपना वोट बैंक बना रखा है, लेकिन उनको कभी आगे बढ़ने नहीं देती।
समाज के अलग-अलग तबके को पत्र लिखकर मैं इन पार्टियों की गंदी वोट बैंक की राजनीति से लोगों को आगाह करना चाहता हूं। जब मैंने व्यापारियों को पत्रा लिखा, बाल्मिकी समाज को पत्रा लिखा, ऑटो वालों को पत्र लिखा और झुग्गीवालों को पत्र लिखा, तब किसी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन जैसे ही मैंने मुसलमानों के नाम पत्र लिखा तो तुरंत कुछ साथियों ने इसका विरोध किया। उन साथियों का कहना है कि मैंने धर्म को आधर बनाकर पत्र क्यों लिखा? ऐसा मैंने इसलिए किया क्योंकि दूसरी पार्टियां धर्म को आधार बनाकर ज़हर घोलती हैं। अगर वो हिंदू और मुसलमान के बीच ज़हर घोलती हैं तो हमें हिंदू और मुसलमान के बीच ही तो एकता की बात करनी पड़ेगी। अलग-अलग धर्मो के लोगों को अपील करके यह तो कहना ही पड़ेगा कि इनकी ज़हरीली बातों में मत आओ और सब एक साथ रहो, भाईचारे के साथ रहो।
कुछ महीनों पहले मैं मुंबई गया। जैसे ही एयरपोर्ट पर उतरा, एक साथी ने आकर मुझे टोपी पहना दी जिस पर मराठी में लिखा था ‘‘मी आम आदमी आहे।’’ दो दिन तक मैं टोपी पहन कर घूमता रहा, किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। कुछ दिनों बाद मेरे घर बंगाल से एक लड़का आया। उसने मेरे सिर पर बंगाली टोपी रख दी, पूरा दिन मैं उसे पहनकर घूमता रहा। किसी ने कुछ नहीं कहा। अभी दिल्ली के गांव-गांव में मैं घूम रहा हूं। ढेरों मंदिरों में जाता हूं। कई गांव में लोग मुझे पगड़़ी पहनाते हैं, कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। लेकिन एक दिन जब एक मुसलमान भाई ने मेरे सिर पर उर्दू की टोपी पहना दी तो कुछ साथियों ने इसका विरोध् किया। मुझ पर आरोप लगाया कि मैं मुस्लिम तुष्टिकरण कर रहा हूं।
विरोध करने वालों में दो किस्म के लोग हैं। एक वो लोग हैं जो कांग्रेस, भाजपा या अन्य पार्टियों से संबंध रखते हैं। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारा पैदा करने की ‘आम आदमी पार्टी’ की राजनीति ने इन्हें विचलित कर दिया है। इन्हें अपनी दुकानें बंद होती नज़र आ रही हैं। दूसरी श्रेणी में वो लोग हैं जो सच्चे हैं, ईमानदार हैं और देशभक्त हैं। जब ऐसे कुछ लोग प्रश्न करते हैं तो मुझे चिंता होती है। ऐसे सभी साथियों से मेरा निवेदन है कि वो बैठकर सोचें कि जो कुछ मैंने किया, वह मुस्लिम तुष्टिकरण था या भारत को जोड़ने के लिए था? जैसे ही ‘मुसलमान’ व ‘उर्दू’ शब्द आता है तो कुछ साथी इतने विचलित क्यों हो जाते हैं? ये पार्टियां यही तो चाहती हैं कि हमारे मन में एक-दूसरे के खिलापफ ज़हर भर जाए।
मैं ऐसे सभी साथियों से हाथ जोड़कर कहना चाहता हूं कि इस देश में हिंदुओं के दुश्मन मुसलमान नहीं है और मुसलमानों के दुश्मन हिंदू नहीं है। बल्कि हिंदुओं और मुसलमानों - दोनों के दुश्मन ये गंदे नेता और उनकी गंदी राजनीति है। जिस दिन इस देश के लोगों को ये छोटा परंतु महत्वपूर्ण सच समझ आ जाएगा, उस दिन इन नेताओं की दुकानें बंद हो जाएंगी। ये नेता हर कोशिश करेंगे कि हमारे दिलों के अंदर ज़हर भरते रहें। साथियों, हमें इसी का सामना करना है।
हमारे दफ्तर में एक लड़का काम करता है। उसका नाम है जावेद। एक दिन उसे सड़क पर चलते हुए पुलिस ने रोक लिया। उससे उसका नाम पूछा। जब उसने अपना नाम बताया तो पुलिस वाले ने धर्म के नाम पर दो गालियां दी और पांच मिनट तक उसे सड़क पर मुर्गा बना दिया। मैं यह नहीं कहता कि सारी पुलिस फोर्स ऐसी हैं। लेकिन अगर कुछ पुलिस वाले ऐसा करते हैं, तो क्या हमें उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए? उसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठानी चाहिए? क्या ऐसा करना मुस्लिम तुष्टिकरण होगा?
हमारी कार्यकर्ता संतोष कोली का एक्सीडेंट हुआ। ऐसा शक है कि उसका एक्सीडेंट करवाया गया। वह दलित समाज से है। अगर आज हम उसका साथ दे रहे हैं तो क्या यह दलितों का तुष्टिकरण है? अभी एक महीना पहले बिहार से दिल्ली आई एक महिला का सामूहिक बलात्कार किया गया। हमने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई। तो क्या यह बिहारियों का तुष्टिकरण था? मैंने 1984 में सिखों के कत्लेआम के खिलापफ आवाज़ उठाई तो क्या वह सिखों का तुष्टिकरण था? मैंने कई मंचों से कश्मीरी हिंदुओं के साथ हुए अन्यायों के खिलाफ आवाज़ उठाई तो क्या यह हिंदुओं का तुष्टिकरण था? यदि नहीं, तो फिर इशरत जहाँ मामले में निष्पक्ष जांच की मांग करना मुसलमानों का तुष्टिकरण कैसे हो सकता है? हम क्या मांग रहे हैं? केवल निष्पक्ष जांच ही तो मांग रहे हैं। क्या निष्पक्ष जांच नहीं होनी चाहिए?
इसमें कोई शक़ नहीं कि कई आतंकवादी मुसलमान रहे हैं। पर इसका मतलब यह कतई नहीं हो सकता कि हर मुसलमान आतंकवादी होता है। मैं ऐसे कई मुसलमानों को जानता हूं जो भारत के लिए सब कुछ न्यौछावर करके बैठे हैं। आज देश को ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, अब्दुल हमीद और कैप्टन हनीपुफद्दीन पर गर्व है। ‘आम आदमी पार्टी’ में ही कितने मुसलमान साथी हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए अपनी नौकरी और अपना परिवार दोनों त्याग दिए।
जैसे कई आतंकवादी मुसलमान होते हैं वैसे ही कई आतंकवादी और देशद्रोही अन्य धर्मो से भी होते हैं। माधुरी गुप्ता तो हिंदू थीं जिसने पाकिस्तान को भारत के कई सुराग बेच दिए थे। मेरा मानना है कि आतंकवादी न हिंदू होता है और न मुसलमान। वो केवल गद्दार होता है। उसे सख़्त से सख़्त सज़ा मिलनी चाहिए। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई - कोई भी धर्म हमें एक-दूसरे की हत्या या नफरत करना नहीं सिखाता। हर धर्म प्यार और मोहब्बत का संदेश देता है। इसीलिए आतंकवादी न हिंदू होते हैं और न ही मुसलमान।
बाटला हाउस मामले पर भी कुछ साथियों ने सवाल खड़े किए हैं। इस मामले में दो युवाओं की मौत हुई और एक पुलिस अफसर श्री मोहन चंद शहीद हुए। कई लोगों के मन में शक़ है कि क्या उन युवाओं को मारने की जरूरत थी या उन्हें जि़ंदा पकड़ा जा सकता था? अगर वो दोनों शख़्स आतंकवादी थे तब तो उन्हें जि़ंदा पकड़ना अत्यंत आवश्यक था ताकि उनके मालिकों का पता लगाया जा सके। और यदि वो निर्दोष थे तो क्या दोषी पुलिस वालों को सज़ा नहीं मिलनी चाहिए? मौके पर एक जाबांज़ पुलिस अफसर श्री मोहन चंद शहीद हुए। वो अपना फ़र्ज़ अदा करते हुए शहीद हो गए। उनकी मौत कैसे और किन हालातों में हुई? क्या इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करना मुस्लिम तुष्टिकरण है?
इस देश को बचाने के लिए न जाने कितने पुलिस वालों ने अपनी जान दी है। मध्य प्रदेश के आई.पी.एस नरेंद्र कुमार को भाजपा सरकार के शासन में खनन मापि़फया ने कुचल कर मार डाला। उत्तर प्रदेश के कुण्डा जिले में डी.एस.पी. जि़या-उल-हक़ को एक नेता के समर्थकों की उपद्रवी भीड़ द्वारा हत्या करवा दी गई। ‘आम आदमी पार्टी’ ने इन मामलों में आवाज़ उठाई। 26 नवंबर 2008 को कांग्रेस शासनकाल में मुंबई पर आतंकवादियों का हमला हुआ। कई कमांडो ने अपनी जान पर खेलकर देश को बचाया। कमांडो सुरिंदर सिंह उनमें से एक थे। उनकी पैर में गोली लगी। बम धमाके में उनकी सुनने की क्षमता समाप्त हो गई। उन्हें सम्मानित करना तो दूर, कांग्रेस सरकार ने उन्हें शारीरिक रूप से अक्षम घोषित करके नौकरी से निकाल दिया। कई महीनों तक उनकी पेंशन नहीं दी। ‘आम आदमी पार्टी’ ने उनकी न्याय की लड़ाई लड़ी। उसके बाद उन्हें पेंशन मिलने लगी। अब ‘आम आदमी पार्टी’ ने दिल्ली कैंट विधानसभा से उन्हें उम्मीदवार घोषित किया है। इन्हीं पार्टियों की दुकानें अब बंद होती नज़र आ रही हैं।
साथियों पहली बार इस देश में एक नई राजनीति की शुरुआत करने की कोशिश की जा रही है। यह एक छोटी शुरुआत है। पर एक ठोस शुरुआत है। यह एक छोटा-सा पौधा है। यह पौधा बड़ा होकर पेड़ बने और सबको फल और छाया दे - इसी में हम सबका भला है। ध्यान रहे कि इसे रौंद मत देना।
हमारे अन्दर सौ कमियां हो सकती हैं। परंतु हमारी नीयत साफ है। हम एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत चाहते हैं। हम एक ऐसा भारत चाहते हैं जिसमें सभी धर्मो और जातियों के बीच बराबरी का रिश्ता हो। और सभी लोग भाईचारे और अमन-चैन से जिएं इसके अलावा हमारा कोई और दूसरा मकसद नहीं है।
--- आप का अरविन्द.-

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